पत्थर को सोना बनाने वाले प्राचीन भारत के महान रसायन शास्त्री महर्षि नागार्जुन

 विश्व में सबसे पहले ज्ञान भारत में आया था, भारत के ऋषियों ने वैदिक धर्म के विस्तार के लिए भारतीय राजाओं को चक्रवर्ती राज्य स्थापना करने के अनवरत प्रयास होते रहे | विश्व को एक सूत्र में बाँधने के लिए वैदिक ऋषियों ने सम्पूर्ण विश्व में वैदिक ज्ञान को स्थापित करने के लिए गुरुकुल व्यवस्था भी प्रचलित की |  आज आधुनिक विश्व भर में विशेषकर यूरोप में विज्ञान ने जितनी उन्नति की है, उसके पीछे भारत ही प्रेरणा स्रोत रहा है | समय-समय पर प्राचीन भारत के ऋषि मुनि व वैदिक विद्वानों के विषय में कुछ न कुछ प्रकाशित होता रहा है, जिससे पता चलता है कि वेदों में ज्ञान-विज्ञान का भण्डार छिपा हुआ है | वेदों के रहस्यों को जानने के लिए तपस्या व साधना की आवश्यकता होती है |  कुछ ऐसे महा पुरुष हुए जिन्होंने अपने वो चमत्कार आज से सदियों पहले कर दिए जो आज तक वैज्ञानिक भी नहीं कर पाए. ऐसे ही एक महर्षि थे नागार्जुन |



    जिनके बारे में लोग कहते थे कि वो पत्थर को सोना बना सकते थे यहां तक कि वो अमृत भी बना सकते थे. तो आइये जानते हैं उस महान वैज्ञानिक, चिकित्सक, रसायन शास्त्री नागार्जुन के बारे में कुछ रोचक बातें |


    नागार्जुन ने 12 साल की उम्र में ही रसायन विज्ञान के क्षेत्र में शोध करना शुरू कर दिया था. रसायन विज्ञान पर इनकी प्रसिद्ध पुस्तकें 'रस रत्नाकर' और 'रसेंद्र मंगल' है |


    महर्षि नागार्जुन प्राचीन भारत के महान रसायन शास्त्री, धातु विज्ञानी और चिकित्सक थे. उन्होंने रसायन विज्ञान, धातु विज्ञान और दवाइयां बनाने के क्षेत्र बहुत शोध किया और पुस्तकें लिखी हैं. ऐसा माना जाता है कि महर्षि नागार्जुन का जन्म 931 ईसवी में गुजरात के दैहक गांव में हुआ था |


       भारत का रसायन विज्ञान और धातु विज्ञान का इतिहास लगभग 3 हजार साल पुराना है. प्राचीन भारत रसायन और धातु विज्ञान में कितना आगे था इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि दो हजार  साल पहले बने दिल्ली के महरौली इलाके में स्थित लौह स्तंभ में आज तक जंग नहीं लगी. महर्षि वाराह मिहिर ज्योतिषाचार्य ने सात मंजिल वाले सूर्य स्तम्भ की स्थापना की विशेष जानकारी को सुरक्षित करने हेतु लौह स्तम्भ की स्थापना की थी, जिससे भावी पीढ़ी लम्बे कालखंड तक 27 नक्षत्रों व ज्योतिष के ब्रह्माण्डीय रहस्यों को समझने के लिए इस सूर्य स्तम्भ का उपयोग कर सके |


    रस रत्नाकर में उन्होंने पेड़-पौधों से अम्ल और क्षार प्राप्त करने की कई विधियां बताई गई हैं जिनका उपयोग आज भी किया जाता है. इसी पुस्तक में उन्होंने यह भी बताया है कि पारे को कैसे शुद्ध किया जाए और उसके योगिक यानी की कम्पाउंड कैसे बनाया जाए. .


     रस रत्नाकर में ही महर्षि नागार्जुन ने चांदी, सोना, टिन और तांबे की कच्ची धातु निकालने और उसे शुद्ध करने के तरीके भी बताये हैं. इस पुस्तक को उन्होंने अपने और देवताओं के बीच बातचीत की शैली में लिखा था. .


   नागार्जुन ने रस रत्नकर में ही वर्णन दिया है कि दूसरी धातुएं सोने में कैसे बदल सकती हैं, अगर वो सोने में ना भी बदले तो उनके ऊपर आई पीली चमक सोने जैसी ही होगी. उन्होंने हिंगुल और टिन जैसे खनिजों से पारे जैसी वस्तुएं बनाने का तरीका भी बताया था. .


       नागार्जुन एक बहुत अच्छे चिकित्सक थे, उन्होंने कई बड़े रोगों की औषधियां तैयार की. चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में इनकी प्रसिद्ध पुस्तक 'कक्षपुटतंत्र', 'आरोग्य मंजरी', 'योग सार' और 'योगाष्टक' है. .


      नागार्जुन ने पारे पर बहुत शोध कार्य किया था और बताया था कि इससे बड़े - बड़े रोगों को दूर करने के लिए दवाइयां कैसे बनाई जाएं. .


अपनी एक पुस्तक में नागार्जुन ने पारे को शिव तत्व और गंधक को पार्वती तत्व माना और कहा कि इन दोनों तत्वों के हिंगुल (एक प्रकार का खनिज़) से जु़ड़ने पर जो द्रव्य उत्पन्न हुआ, वो जीवनकाल बढ़ाने के लिए काफी फायदेमंद है. इसे उन्होंने रससिंदूर नाम दिया. .


   नागर्जुन के बारे में लोग कहते थे कि लम्बे समय तक ध्यान में बैठकर  देवी-देवताओं के संपर्क में थे. वे दैवीय शक्तियां ही उन्हें वैदिक विज्ञान के सूत्रों के रहस्य सुलझाने में सहायता करती थी,  जिससे उनके पास धातुओं को सोने में बदलने की विधि  आ गई थी और वह अमृत भी बना सकते थे, जिससे शरीर कभी बूढ़ा नहीं हो पाता था, केवल जब शरीर छोड़ने की इच्छा हो तभी शरीर की मृत्यु होती थी |