नई दिल्ली | हिन्दू महासभा के राष्ट्रीय प्रवक्ता आचार्य मदन ने कहा, " मुसलमानों की बाबर का गे पार्टनर बाबरी के नाम से मस्जिद बनाने की मांग नाजायज है, बाबर एक विदेशी आततायी व बर्बर लूटेरा मुसलमान ही नहीं, अपितु समलेंगिग नशेबाज भी था"
आचार्य मदन ने बताया कि बाबर का समर्थन करने वाले बाबरी मस्जिद के सभी पक्षकार देशद्रोही है, इन सब पर देशद्रोह का मुकदमा चलना चाहिए | देश के मुस्लिम समुदाय को कुछ कट्टर मुस्लिम नेता इस्लाम के नाम पर गुमराह कर रहे हैं, जबकि बाबर की असलियत यह कहती है कि उसका इस्लामिक धर्म में कोई रूचि नहीं थी, उसका उद्देश्य केवल लूटपाट था |
बाबर के गेंग के लुटेरों ने अयोध्या में भी हमला कर यहाँ के हिन्दू नागरिकों को लूटा, बाबर के सेनापति मीर बाकी ने विशेष रूप से श्रीराम जन्मस्थान मंदिर पर कब्ज़ा किया, और हिन्दुओं को अपमानित करने व बाबर को खुश करने के लिए के लिए श्रीराम जन्म स्थान मंदिर को बाबर के चहेते लौंडे बाबरी के नाम पर बाबरी मस्जिद कहना शुरू कर दिया | हिन्दुओं ने अपने शौर्य प्रदर्शन से शीघ्र ही बाबर के गुंडों को अयोध्या से खदेड़ कर भगा दिया | कालान्तर में अन्य मुग़ल आक्रमणकारियों ने काशी, मथुरा की तरह अयोध्या में पुनः कब्जे करने के अनेक बार असफल प्रयास किये. गुरु गोविन्द से लेकर मराठा वीरों तक ने सदैव अन्य तीर्थों की तरह अयोध्या पूरी की भी रक्षा की |
ब्रिटिश काल में मुसलमानों का तुष्टिकरण का काम शुरू होते ही श्रीराम जन्मस्थान पर मुसलमानों के कब्जे के प्रयास फिर से होने लगे | आज बाबरी मस्जिद के नाम पर भारत के मुसलमान भारत के ही मूल निवासी हिन्दुओं के धार्मिक अधिकारों को मिटाने के लिए एक षड्यंत्र का शिकार हो चुके हैं | यदि देश का मुसलमान या सेक्युलर हिन्दू बाबरी नाम के लौंडे की सच्चाई जान ले तो शीघ्र ही अयोध्या में भगवान् श्रीराम का भव्य मंदिर का मार्ग प्रशस्त हो जाएगा |
क्या है बाबरी लौंडे की कहानी
चंगेज़ खान और तैमूर के वंश में पैदा हुए बाबर एक समलेंगिग लूटेरा था | वर्तमान उजबेकिस्तान में पैदा हुआ | बाबर 20 अप्रैल 1526 को इब्राहिम लोदी को कत्ल कर आगरा की गद्दी पर बैठा था | बाबर उस बाबरी मस्जिद के कारण जाना जाता है, जिसे उसने बनवाया ही नहीं था, हाँ बाबरी नामक एक लौंडे के साथ उसका इश्क हुआ इस बात में सत्यता है | आईये, बाबर की इस समलेंगिग रिश्ते की कहानी उसकी खुद की आत्मकथा में लिखी है |
बाबरनामा किताब यानी तुज़्क-ए-बाबरी में खुद बाबर ने लिखा, अपनी इस आत्मकथा में, पृष्ठ संख्या 120-121, में उसने लिखा कि उसकी माँ ने उसकी शादी उसकी चचेरी बहन आयशा से करा दी, निकाह के दो महीने में ही उसकी बीवी उसके जी से उतर गयी | अब उसकी अपनी बीवी में कोई दिलचस्पी नहीं थी.......वो आगे लिखता है – एक बार बाजार में घूमते घूमते एक लौंडा बाबरी अचानक सामने आ गया | ऐसा समां बंधा कि जबान हलक में अटक गयी। खून के ऐसे दौर बहे कि आँख में आँख डालने की हिम्मत ना हुई ! ऊपर-नीचे बस नमी और गीलापन और उस पल एकदम एक शेर छूटा
नम कर जाता है तू अपनी निगाहों से ऐ आशिक़
निगाहें मुझ पर हैं सब और मेरी मगर हैं तुझ पर
इसके बाद लौंडे बाबरी की चाहत इसकी खोपड़ी में इस तरह तारी थी कि उसकी याद में वो ऊद बिलाव की तरह कूदता था। नंगे सर, नंगे पैर, नंगे धड़ वो लौंडे बाबरी के ही सपने देखा करता था |
तेरी तमन्ना मुझे कहीं का ना छोड़ेगी
हाय आशिक़ों की यही तक़दीर क्यों है
ना दूर तुझे कर सकूँ ना पास तेरे आ सकूँ
कैसी ये हवस है या है मुहब्बत तेरी
पागल मुझे क्यों किया ऐ मेरे मर्द-महबूब