गृहस्थों के लिए आवश्यक है-दर्श पूर्णमास यज्ञ

       Image result for विराट हवन


   यज्ञ से उत्तम कोई भी कर्म नहीं है | इसका एक अर्थ यह भी है कि जो भी उत्तम कर्म है वह यज्ञ है | वह स्वयं में एक यज्ञ है | जैसे परोपकार स्वयं में एक श्रेष्ठ कर्म है, वैसे ही यज्ञ स्वयं में एक लोकोपकार कर्म है | ऋषियों ने वेदों में वर्णित यज्ञों से अनेक प्रकार के विज्ञान को सिद्ध कर संसार को लाभ पहुंचाया | किन्तु भौतिक सुखों में गृहस्थ सुख स्वयं में पूर्ण सुख है | गृहस्थ के ही मानवीय सुखों को सिद्ध करने में दैनिक हवन की अपनी विशिष्ट भूमिका है | वैदिक काल में गुरुकुलीय शिक्षा व धर्म व्यवस्था के प्रभाव से सभी मनुष्य नित्य यज्ञ में कुछ न कुछ द्रव्य समर्पित करते थे |


  गीता में भी यज्ञ से कामनाओं की पूर्ति होने की चर्चा हुई है | गीता पांच हजार साल की संस्कृति का प्रमाण है तो लगभग दो करोड़ वर्ष पूर्व रामायण काल में भी  राजा दशरथ ने श्रृंगेरी ऋषि के निर्देशन व ब्रह्मत्व में पुत्रेष्टि यज्ञ का आयोजन किया और फिर उन्हें  चार दिव्य सन्तानें प्राप्त हुई |Image result for पुत्रेष्टि यज्ञ


   शतपथ ब्राह्मण ग्रन्थ में अग्न्याधान और अग्नि चयन से सम्बंधित अनेक रहस्यों को उद्घाटित किया है | अग्निपुराण में तथा उपनिषदों में वर्णित पंचाग्नि विद्या में यज्ञ रहस्य को भी समझाने का प्रयास किया है |  विश्वामित्र आदि ऋषि इंद्र शक्ति को प्राप्त करने के लिए और ब्रह्मास्त्र जैसे दिव्य अस्त्रों को प्रयोग करने के लिए भी अनेक मान्त्रिक यज्ञों का अनुष्ठान करते थे |  लंका विजय के उपरांत प्रभु श्रीराम ने दस अश्वमेध यज्ञ किये थे |


   


Image result for हवन कुण्ड


महाभारत में पांडवों का राजसूय यज्ञ और महाराजा युधिष्ठिर के महल में प्रतिदिन हजारों ब्राह्मणों व संन्यासियों का सत्कार होता था |  कलयुग में स्वामी दयानंद ने याज्ञिक कर्मकाण्ड पर सबसे अधिक बल दिया | पञ्च महा यज्ञ में अग्निहोत्र नित्य कर्म में सम्मिलित किया | सभी गृहस्थों को दैनिक अग्निहोत्र अवश्य करना चाहिए | यज्ञ करने से मानसिक बल प्राप्त होता है | निसंदेह यज्ञ हमारी सभी भौतिक कामनाओं को पूर्ण करने में सक्षम है | यज्ञ का प्रत्यक्ष लाभ हमें मन के उत्साह और आत्म विश्वास में वृद्धि के रूप में प्राप्त होता है


|Image result for घोर अंधकार में हवनImage result for घोर अंधकार में हवन


     इसलिए जो भी व्यक्ति प्रातः ध्यान संध्या के उपरान्त हवन करता है वह अपने भीतर एक अतिरिक्त आत्म विश्वास को अनुभव करता है | परमात्मा के प्रति उसकी आस्था प्रतिदिन दृढ होती जाती है | वह हर प्रकार के भय पर विजय प्राप्त करता है | सायं काल भी यज्ञ करना चाहिए | किन्तु आज कल की भागदौड़ में यदि हवन की तैयारी में समय न मिलता हो तो पन्द्रह-पन्द्रह दिन में हवन अवश्य करना चाहिए | यदि दैनिक या साप्ताहिक यज्ञ भी करते हो तो भी अमावश्या और पूर्णिमा के दिन यज्ञ से मनोकामना सिद्ध के विशिष्ट यज्ञ का विधान है | पन्द्रह दिन के अन्तराल में होने वाले इन यज्ञों को दर्श पूर्ण मासी यज्ञ कहते हैं | 


सुवर्गाय हिवैलोकाय दर्शपूर्णमासौ इज्यते।

 ( तैति ० स ० २/२/५ )

अर्थात् ,प्रत्येक माह में अमावस्या और पूर्णिमा के दिन के हवन को दर्श पूर्णमास कहते हैं |

शास्त्रों में पूर्णिमा और अमावश्या के दिन पक्षेष्टि करने का विधान है | चंद्रमा अमावस्या के दिन अदृश्य होता है | चंद्रमा का हमारे मन से सम्बन्ध होता है | आधिदैविक तल पर चंद्रमा और मन एक दुसरे से जुड़े हुए हैं, इस कारण जब चंद्रमा सूर्य से अस्त होता है तो सूर्य चन्द्र के एक साथ वास करने पर आधि दैविक शक्ति उत्पन्न होती है, जो यज्ञ के द्वारा सिद्ध कर सकते हैं | अमावस्या के यज्ञ का पारिभाषिक नाम अविधान दर्शेष्टि हैं | और पूर्णिमा के यज्ञ का नाम पौर्णमासेष्टि है | यज्ञ की अग्नि का सूक्ष्म भाग  पृथ्वी के तल पर और पृथ्वी की बाहरी कक्षा से लेकर सूर्य की बाहरी कक्षा तक फिर सूर्य के भीतर की प्राण शक्ति तक पहुंचता है | अमावस्या तिथि के प्रारम्भ से और जब सूर्य व चंद्रमा समान अंशों में हो फिर उसके उपरांत कुछ घटी पर्यंत यज्ञ का विशेष मुहूर्त होता है, जो आत्मिक सिद्धि अर्थात् महान भौतिक कामना को पूर्णतः सिद्ध करने के लिए मानसिक व आत्मिक बल प्रदान करता है |

इसलिए गृहस्थों को आदेश देते हुए महर्षि मनु लिखते हैं -

अग्निहोत्रं च जुहुयादाद्यन्ते द् युनिशोः सदा। 

दर्शेन चार्धमासान्ते पौर्णमासेन चैव हि। । 

                                                     (मनु ० ४/४५ )

अर्थात् गृहस्थ प्रतिदिन दिन-रात के आदि और अन्त में अर्थात्  सायं प्रातः सन्धि वेलाओं में अग्निहोत्र करे और आधे मास के अन्त में दर्शयज्ञ अर्थात् अमावस्या का यज्ञ करे तथा इसी प्रकार पन्द्रह दिन के उपरान्त मास पूर्ण होने पर पूर्णिमा के दिन पौर्णमास यज्ञ करे | 

   

     संस्कार विधि गृहस्थ प्रकरण में लिखा है -  पक्षयाग अर्थात् जिसके घर में अभाग्य से अग्निहोत्र न होता हो तो सर्वत्र पक्षयागादि में  यज्ञ करें साथ ही ईश्वरोपासना ,स्वस्तिवाचन, शान्तिकरण भी यथायोग्य करें |