इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय कला व संस्कृति के जम्मू-काश्मीर व लद्दाख राज्य के निदेशक वीरेन्द्र बांगुरु का दावा है कि जम्मू उधमपुर की पटनीटॉप पर्वत के पास सुध महादेव(शुद्ध महादेव) के मंदिर में प्रतिष्ठित 12 फीट ऊँचा त्रिशूल वैदिक कालीन भारतीय धातु विज्ञान की उत्कृष्ट धरोहर है | यह मंदिर शिवजी के इसी एक त्रिशूल के कारण देश-विदेश के सैलानियों का आकर्षक का केंद्र बन गया है |
श्री वीरेन्द्र बांगुरु ने बताया कि इस त्रिशूल पर ब्राह्मी लिपि में शिव तंत्र के कुछ सूत्र टंकित किये है, जो धातु पर लेखन कार्य की प्राचीन कला का परिचय कराते हैं | इसी तरह का एक और त्रिशूल उत्तराखंड के उत्तरकाशी खंड में स्थित काशी विश्वनाथ मंदिर के प्रांगण में स्थापित है | काशी विश्वनाथ के इस पुरातन त्रिशूल की लम्बाई लगभग 23 फीट है |
प्राकृतिक आपदा के मामले में जम्मू क्षेत्र के मंदिर आज भी अपने हजारों साल के इतिहास को समेटे हुए हैं | सुध महादेव के त्रिशूल में लगा लौह में जंग नहीं लगता | हालांकि इसके अब तीन टुकड़े हो चुके हैं, किन्तु ऐसी दन्त कथा है कि भगवान शिव के इस त्रिशूल में दिव्य शक्ति का वास है, इसमें त्रिलोकी नारायणी शक्ति का वास, जिसके कारण इसके दर्शन मात्र से दिव्य अनुभूति होने लगती है |
सुध महादेव मंदिर
गौरी कुण्ड – मानतलाई
यहाँ पाठकों की जानकारी के लिए बता दें कि सुध महादेव मंदिर से लगभग पांच किलोमीटर दुरी पर माता पार्वती की जन्म भूमि मानतलाई है | एक कथा के अनुसार यहाँ पूर्व किसी जन्म में माँ पार्वती का शिव जी से विवाह हुआ था | पार्वती मंदिर और गौरी कुण्ड के रूप में शक्ति वास कर रही है |
पुरातत्व विशेषज्ञ वीरेन्द्र बांगुरु जी ने अध्ययन करके पाया कि त्रिशूल के ऊपर वाला हिस्सा बड़ा हिस्सा है | मध्यम आकर वाला बीच का हिस्सा है तथा सबसे नीचे का हिस्सा सबसे छोटा है जो की पहले थोड़ा सा जमीन के ऊपर दिखाई देता था पर मदिर के अंदर टाईल लगाने के बाद वो फर्श के लेवल के बराबर हो गया है | त्रिशूलों के ऊपर ब्राह्मी लिपि में टंकित लेख उचित संरक्षण न मिल पाने के कारण घिसने के कारण कुछ अस्पष्ट हो रहे हैं, इस पर गंभीर शोध की आवश्यकता है, जिससे शैव तंत्र व भारतीय धातु विज्ञान की विद्या की प्राचीन परम्परा को संरक्षित किया जा सके |
यह त्रिशूल मंदिर परिसर में खुले में गड़े हुए है और सनातनी हिन्दू श्रद्धालु जन इनका नित्य जलाभिषेक भी करते है |
सुध महादेव की पौराणिक कथा
एक दिन जब पार्वती वहां पूजा कर रही थी तभी सुधान्त राक्षस भी आ पहुंचा, जैसे ही माँ पार्वती ने पूजन समाप्त होने के बाद अपनी आँखे खोली तो सामने उस राक्षस को खड़ा देखकर घबरा गई | वो जोर जोर से चिल्लाने लगी | महादेव ने पार्वती के प्राण संकट में जान कर राक्षस को मारने के लिए अपना त्रिशूल फेका त्रिशूल आकर सुधांत के सीने में लगा | वही त्रिशूल तीन टुकड़ों में इस परिसर में है |
मंदिर परिसर में एक स्थान ऐसा भी है, जहाँ लिखा है कि यहां सुधान्त राक्षस की अस्थिया रखी है | एक मत के अनुसार राक्षस की अस्थियाँ त्रिशूल स्थान से नैऋत्य कोण की दिशा में मंदिर के बाहर किसी स्थान पर भूमि पर दबी हुई हैं |
मंदिर परिसर में गड़े हुए त्रिशूल के टुकड़े
पाप नाशनी बाउली
मंदिर के बाहर ही पाप नाशनी बाउली (बावड़ी) है जिसमे की पहाड़ो से 24 घंटे 12 महीनो पानी आता रहता है | ऐसी मान्यता है कि जो भी शिव भक्त इस जल से नहाता है उसके सारे पाप नष्ट हो जाते है | अधिकतर भक्त इसमें स्नान कर शुद्ध होकर मंदिर में महादेव की पूजा करते हैं तो बाबा भक्त की शीघ्र मनोकामना पूर्ण करते हैं |
बाबा रूपनाथ की धूणी :
इस मंदिर में नाथ सम्प्रदाय के संत बाबा रूप नाथ ने सदियों पहले समाधि ली थी उनकी धूणी आज भी मंदिर परिसर में है जहाँ की अखंड ज्योत जलती रहती है |
प्रतिवर्ष यहाँ श्रावण मास की पूर्णिमा पर तीन दिवसीय उत्सव चलता है जिसमे भारत भर से शिव भक्त एकत्रित होकर भाग लेते हैं |