हर तीन वर्ष बाद आने वाला अधिक मास ज्योतिष दृष्टिकोण से एक महत्वपूर्ण घटना होती है. माह में वृद्धि होने के कारण ही इसे अधिक मास की संज्ञा दी गई है. वर्तमान में 2020 में आश्विन मास का समय अधिक मास का होगा. और यह योग 2001 के बाद इस साल आ रहा है. 19 साल बाद पुनः अधिक मास का आरंभ 18 सितंबर 2020 को होगा और इसकी समाप्ति 16 अक्टूबर को होगी.
क्या होता है अधिक मास
सूर्य का मेष राशि से होते हुए सभी 12 राशियों में संक्रमण का काल संक्रांति कहलाता है. इसी के द्वारा संवत्सर का निर्माण होता है, इसे सौर वर्ष भी कहा जाता है. पर जब जिस भी मास में सूर्य का किसी भी राशि पर संक्रमण न हो तो वह मास "अधिक मास" कहलाता है. हर तीन वर्ष पश्चात आने वाला यह मास पंचांग की गणना को एक महत्वपूर्ण आयाम देता है. इसी गणना का आधार सौर वर्ष एवं चंद्र वर्ष की स्थिति को सही रुप से अभिव्यक्त करता है.
हिंदू पंचांग गणना में अधिक मास
ज्योतिष एवं धर्म ग्रंथों में इसे पुरुषोत्तम व मल मास के नाम से भी पुकारा जाता है. यह मास आध्यात्मिक उर्जा को वृद्धि देता है. इस का काल गणना में अत्यंत ही प्रभशाली असर देखने को मिलता है. मान्यता है कि इस महीने में भगवान विष्णु का पूजन किया जाना उत्तम होता है.
ज्योतिषि गणना में स्पष्ट होता है कि इस वर्ष सूर्य की संक्रांति में ही आश्विन मास की दो अमावस्याएं व्यतीत हो जाएंगी. पहली अमावस्या के बाद दूसरी अमावस्या तक का मास ही पुरुषोत्तम मास होगा. इस तरह से 2020 में दो आश्विन मास होंगे.
ज्योतिष की विवेचना में सूर्य भगवान को ही संपूर्ण ज्योतिष शास्त्र का अधिष्ठाता माना गया है. पंचांग गणना में सौर वर्ष व चंद्र वर्ष का अध्ययन होता रहा है. चंद्र वर्ष 354 दिन का माना गया है और सौरमास 365 दिन का बताया गया है. इन दोनों के गणित में कुल मिलाकर प्रत्येक वर्ष 11 दिनों का अंतर देखने को मिलता है. यह अंतर तीन साल में एक माह के करीब का होता है. इस कारण से सौर वर्ष और चंद्र वर्ष के मध्य के अंतर की कमी को दूर करने के लिए अधिक मास को आधार बनाया गया है.
अधिक मास में किए जाने वाले कार्य
- अधिक मास के समय भगवान श्री विष्णु जी का पूजन किया जाता है.
- आचरण की शुद्धता और पवित्रता का ध्यान रखा जाता है.
- आलौकिक आध्यात्मिक उर्जा पाने के लिए श्री विष्णु व शिव का वंदन करना चाहिए.
- अधिक मास समय व्रत और तप को महत्ता दी गयी है.
- उपासना, ध्यान व स्नान का महत्व होता है.
अधिक मास में क्या नही करना चाहिए
- अधिक मास में कामना के लिए अर्थात फल की इच्छा प्राप्ति के लिए किए गए कार्य नहीं किए जाते.
- अधिक मास समय पर मांगलिक कार्य रुक जाते हैं.
- अधिक मास समय विवाह, सगाई, गृह प्रवेश इत्यादि कार्य नही किए जाते.
- नए वस्त्र व नए आभूषण धारण नहीं किए जाते.
- वाहन इत्यादि की खरीद, भूमि निर्माण कार्य नहीं किए जाते.
- उपनयन संस्कार, यज्ञोपवीत, व्रत उद्यापन कार्य नहीं किए जाते.