किसी भी कुंडली के फलादेश करने से पूर्व ग्रहों का बलाबल तो देखना ही चाहिए साथ ही, वे ग्रह शयन आदि किस अवस्था में है, यह भी अवश्य देख लेना चाहिए. ग्रहों के अंशों के आधार पर ही ग्रह की ये अवस्था प्रकट होती है. पाराशरी पद्धति से उपयोग में लाने वाले लगभग सभी प्रमुख सॉफ्टवेर में ग्रहों की ये अवस्था का वर्ग चार्ट उपलब्ध होता है. किन्तु फल कथन नहीं दिया जाता है, इसलिए ग्रहों के शयनादि के फल नीचे दिए है, जिसके आधार पर फलादेश जानने के इच्छुक बहुत ही सरलता से यह जान सकते हैं.
फल कथन में ग्रहों का शयनादि अवस्था फल अत्यन्त प्रभाव होता होता है. जो ज्योतिष के विद्यार्थी कुंडली में गहन शोध करना चाहते हैं, वे इसे भी प्रयोग में लाएं.
इन बारह अवस्थाओं के नाम इस प्रकार से हैं-1. शयन, 2. उपवेशन अवस्था अर्थात बैठी हुई अवस्था, 3. नेत्रपाणि अवस्था अर्थात नेत्रों पर हाथ रखे हुए अवस्था, 4. प्रकाशन अवस्था अर्थात रोशन व प्रज्वलित अवस्था, 5. गमन अवस्था अर्थात प्रस्थान अवस्था, 6. आगमन अवस्था अर्थात आना / प्रस्तावना अवस्था, 7. सभा अवस्था अर्थात सम्मेलन अवस्था, 8. आगम अवस्था अर्थात वृद्ध / बढ़ना अवस्था, 9. भोजन अवस्था अर्थात भोजन ग्रहण करना अवस्था, 10. नृत्यलिप्सा अवस्था अर्थात नृत्य करने की इच्छा / लोलुपता अवस्था 11. कौतुक अवस्था अर्थात जिज्ञासा अवस्था 12. निद्रा अवस्था. इस लेख में ग्रह की शयन अवस्था की चर्चा कर रहे हैं.
शयन अवस्था- ऐसी अवस्था जब जीवन में किसी कार्य के उपरान्त विश्राम की दशा आती है, शयन अर्थात निद्रा से पूर्व की स्थिति अथवा विश्राम / आनन्द हेतु लेटी हुई अवस्था कहलाती है. इस अवस्था निद्रा अवस्था से भिन्न है. इस में जातक किसी रोग से पीड़ित होकर घर पर अथवा चिकित्सालय में भी विश्राम कर रहा होता है. ये निर्भर करता है ग्रह पापी है अथवा पाप ग्रह से पीड़ित है. धन के नाश होने पर भी निश्चेष्ट अवस्था आती है.
सूर्य - जिसके जन्म समय में सूर्य शयन अवस्था में हो उसे सदा मन्दाग्नि रहती है, उदर सम्बन्धी कष्ट रहता है. पित्त जन्य रोग से दुखी रहता है, भगन्दर हो सकता है व हृदय शूल रोग से भी पीड़ित हो सकता है.
चन्द्र - जिसके जन्म समय में चन्द्र शयन अवस्था में हो वह जातक अधिक प्रतिष्ठा चाहने वाला, शरीर में शीत प्रधान रोग वाला, जल से भयभीत रहने वाला, कामातुर व सञ्चित धन का नाश होने से मृत्यु तुल्य कष्ट पाता है.
मंगल - जिस जातक के जन्म समय में मंगल शयन अवस्था में हो तो वह मनुष्य कमजोर हड्डी, दाद, खाज - खुजली रोग से विशेष पीड़ित होता है.
बुध- जिस जातक के जन्म समय में बुध शयन अवस्था में हो विशेष रूप से लगन या लग्नेश के साथ हो तो वह मनुष्य भूख से व्याकुल रह्ता है. चलने में कुछ कमजोर होता है, गुञ्जा की तरह लाल आंखें होती हैं. इसके अतिरिक्त अन्य भाव में लग्नेश से दृष्टि रहित हो तो ऐसी शयन अवस्थागत जातक लम्पट और धूर्त होता है.
गुरु - जिस जातक के जन्म समय में गुरु शयन अवस्था में हो तो वह मनुष्य बलवान होता हुआ भी कम आवाज़ से बोलता है, देह सौन्दर्य और हनु लम्बा होता है और सर्वदा शत्रुओं के भय से दुखी रहता है.
शुक्र - जिस जातक के जन्म समय में शुक्र शयन अवस्था में हो तो वह मनुष्य बलवान होने पर भी दांत के रोग से दुखी, महाक्रोधी, धनहीन होता है और पर स्त्री के साथ प्रेम व्यवहार करता है.
शनि- जिस जातक के जन्म समय में शनि शयन अवस्था में हो वह दरिद्र भाव को प्राप्त होता है, भूख और प्यास से व्याकुल रहता है, अति परिश्रम से थका हुआ रहता है, जीवन के प्रारम्भ में रोगी, उसके बाद धनी और सुखी हो जाता है.
राहू- जिस जातक के जन्म समय में राहू शयन अवस्था में हो उस जातक को अज्ञात भय व मानसिक रोग से कष्ट रहता है और शत्रुओं द्वारा संतापों से दुखी रहता है. यदि राहू शयन अवस्था में मेष, वृष, मिथुन व कन्या राशि में हो तो वह व्यक्ति अज्ञात तरीके से धनवान होता है.
केतु - यदि केतु ग्रह मेष , वृष, मिथुन अथवा कन्या राशि मे शयनागत अवस्था में हो तो उस जातक परिश्रम व विरोधी वर्ग से धन का अर्जन करता है. अन्य राशिगत होने से रोग विशेष बढ़ता है.