नई दिल्ली | इस बार 2020 में चातुर्मास 4 जुलाई से प्रारंभ होगा, जिसका समापन 29 नवंबर को होगा, किन्तु चातुर्मास (चौमासा) चार नहीं पांच महीने का होगा | इससे पहले ऐसा दुर्लभ संयोग वर्ष 2012 में हुआ था | इस बार दो आश्विन होने से चातुर्मास में सीधे एक माह अधिक चलेगा | इस बार विक्रम संवत् 2077 के आश्विन माह कृष्ण पक्ष 3 सितंबर 2020 से अधिक पुरूषोत्तम मास शुरू होगा, जो आश्विन शुक्ला पूर्णिमा दिनांक 1 अक्टूबर तक रहेगा।
भारतीय मान्यताओं के अनुसार आषाढ़ शुक्ल एकादशी देवशयनी से कार्तिक शुक्ल एकादशी देवप्रबोधिनी तक चातुर्मास माना जाता है |
चातुर्मास धर्म शास्त्रों में एक अत्यंत आध्यात्मिक समय का केन्द्र है. प्राचीन काल से ही इस समय को अत्यंत महत्व दिया गया है. प्राचीन काल से ही ये वो समय रहा है जब साधु सन्यासी अपनी यात्राओं को रोक कर किसी एक स्थान को ही अपना डेरा बनाते थे और उसी स्थान पर चार मास तक जप-तप इत्यादि कार्य करते व अपनी साधना के मार्ग में प्रशस्थ रहते हुए आध्यात्मिक चेतना का विकास करते थे |
चातुर्मास को चौमासा के नाम से भी पुकारा जाता है. चौमासा यानि वो चार माह जब जीवन की यात्राएं रुक जाती हैं और वर्ष भर भ्रमण करने वाले साधू भी अधिक वर्षा के कारण एक स्थान पर रुक ही धर्म प्रचार करते हैं | ग्राम ग्राम पर रहने वाले भी वर्षा के कारण सत्संग में समय बिताते हैं और साधू संन्यासी जनों की सेवा का लाभ लेते हैं | इन चार मासों में एक स्थान पर रहते हुए यही सही समय होता है जब साधू और वैरागी साधक अपनी ध्यान साधना और एकाग्रता को परिष्कृत कर सकते हैं |
ये चार माह हैं- श्रावण, भाद्रपद, आश्विन और कार्तिक| चातुर्मास के प्रारंभ को 'देवशयनी एकादशी' कहा जाता है और अंत को 'देवोत्थान एकादशी' |
एक पावन परिवर्तन के लिए ये नियम अपनाएं
इस दौरान फर्श पर सोना और सूर्योदय से पहले उठना बहुत शुभ माना जाता है | उठने के बाद अच्छे से स्नान करना और अधिकतर समय मौन रहना चाहिए | वैसे साधुओं के नियम कड़े होते हैं| दिन में केवल एक ही बार भोजन करना चाहिए |
चातुर्मास में किन चींजों का करें त्याग
उक्त 4 माह में विवाह संस्कार, जातकर्म संस्कार, गृह प्रवेश आदि सभी मंगल कार्य निषेध माने गए हैं| इस व्रत में दूध, शकर, दही, तेल, बैंगन, पत्तेदार सब्जियां, नमकीन या मसालेदार भोजन, मिठाई, सुपारी, मांस और मदिरा का सेवन नहीं किया जाता | श्रावण में पत्तेदार सब्जियां यथा पालक, साग इत्यादि, भाद्रपद में दही, आश्विन में दूध, कार्तिक में प्याज, लहसुन और उड़द की दाल आदि का त्याग कर दिया जाता है |
रामायण और बौद्ध धर्म में इसकी महत्ता
चार मास के इस लम्बे समय के विषय में रामचरित मानस में बहुत सुन्दर वर्णन प्राप्त होता है | साथ हौ बौध एवं जैन संप्रदायों में भी इन चार मासों का वर्णन प्राप्त होता है | ये वह समय होता है जब साधु सन्यासी भी अपनी यात्राओं को रोक कर किसी एक स्थान को अपने लिए निश्चित कर लेते हैं. उस एक स्थान पर रहते हुए योग ओर उपासना के कार्य संपन्न करते हैं | ये समय जीवन के उस पहलु को विचार करने का होता है जिसके द्वारा जीवन के सत्य को समझा जा सकता है |
इन चार माह उपासना एवं साधना करने से जातक को और समय की तुलना में ज्यादा जल्दी साधना की प्राप्ति का मार्ग मिलता है | पुण्यकारक एवं फलदायी समय होने के कारण अनेक धर्म संप्रदाय एक मत से ही इस समय की महत्ता को अभिव्यक्त करते हैं | जैन धर्म में भी चातुर्मास के समय जैन मुनि ज्ञान, दर्शन, चरित्र व तप की को साधने का कार्य करते हैं. आराधना करते हैं |
चातुर्मास जैन मुनियों के लिए शास्त्रों में नवकोटि विहार का संकेत मिलता है | नव कोटि से अर्थ है मन वचन और कार्य से कृत कारित और अनुमोदन का होना जिसे मुनि धारन करते थे |
चातुर्मास काल में वर्षाकाल महोने के कारण स्वयं को प्रकृति के अनुरुप ढालने का प्रयास करना चाहिए | इस काल में लम्बी यात्राओं को न करने की सलाह दी जाती थी | क्योंकि वर्षा काल समय नदी नाले सभी बहुत अधिक वेग में होते हैं इसलिए यात्राएं करना उपयुक्त नही था |चार मास का समय एक पर्व रुप में वर्णन अधिकांश धर्म ग्रंथ करते दिखाई देते हैं |
भारतीय संस्कृति में परम्परा से इन चार महीनों में वैदिक महात्मा जन विशेष अग्निहोत्र योग तप, प्रवचन, वेद ज्ञान के प्रचार-प्रसार ही करते थे |