भारतीय ज्योतिष में सूर्य पिता का कारक भी है | जिस जातक की कुंडली में सूर्य नीच का हो और नवांश में भी खराब स्थिति में हो अथवा पाप ग्रहों के प्रभाव में हो अथवा राहू केतु से युति में हो तो निश्चित जातक को बहुत परिश्रम के उपरान्त भी सुख नहीं मिलता | सफलता के अवसर उसके हाथ से निकल जाते हैं | सरकार द्वारा दण्डित होता है | ऐसे में जातक तीन वर्षों तक प्रत्येक संक्रांति पर सूर्य की उपासना करें तो उसे पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होगा | सूर्य के शुभ मिलेंगे | आत्म विश्वास बढेगा |
संक्रांति क्या होती है
संक्रांति का अर्थ होता है सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करना. संक्रांति समय को सूर्य से संबंधित समय माना गया है. ये विशेष पर्व सूर्य पूजा का समय होता है. संक्रांति के समय पूजा-पाठ, जप, दान स्नान के कार्यों को उत्तम माना गया है.
हिंदू पंचांग के अनुसार हर माह आने वाली सूर्य की राशि में परिवर्तन का योग होता है. सूर्य का निरयण/सायन राशि परिवर्तन संक्रांति का समय कहलाता है. प्रति वर्ष 12 संक्रांतियां आती है. जिसमें सूर्य एक के बाद एक अपनी राशि बदलता जाता है. संक्रांति दिन दान-पुण्य किया जाता है.
पितृ दोष निवारण के लिए संक्रांति पर क्या करना चाहिए
- संक्रांति के शुभ मुहूर्त में स्नान, दान व पुण्य के मंगल समय का विशेष महत्व है.
- संक्रांति के अवसर पर गंगा स्नान अथवा पवित्र नदियों में स्नान का महत्व बताया गया है.
- संक्रांति के समय तिल, अन्न, वस्त्र धन इत्यादि का दान करना शुभदायी होता है.
- संक्रांति में दान करने से लाभ मिलता है और पुण्य फल की प्राप्ति होती है.
- संक्रांति सम्य व्रत-उपवास का पालन करना भी श्रेष्ठ होता है.
संक्रांति में किए जाने वाले कार्य
संक्रांति के समय विशेष पूजा पाठ और नियमों को बताया जाता है. संक्रांति के समय गंगा स्नान का विधान बताया है. गंगा स्नान के अतिरिक्त पवित्र नदियों, सरोवरों, कुंड अथाव घाटों में स्नान करना अत्यंत शुभ होता है. इस समय पर समस्त कार्यों में पितरों के निमित्त ध्यान देने की भी आवश्यकता होती है. संक्रांति को लेकर धर्म ग्रंथों में बतया गया है कि इस समय के अवसर भगवान आदित्य(सूर्य) की पूजा की जानी चाहिए. प्रात:काल समय पर सूर्य के उदय होते समय उनके समक्ष जल से अर्घ्य प्रदान करना चाहिए.
संक्रांति में होती सूर्य उपासना पर्व
संक्रांति समय और वर्ष की गणना हेतु उपयुक्त होता है. वैदिक दृष्टि से सुर्य की उपस्थिति को अत्यंत ही महत्वपूर्ण बताया गया है. ऎसे में संक्रांति के समय पर विशेष रुप से सूर्य उपासना को अत्यंत ही प्रभावशाली समय बताया जाता है. ज्योतिष दृष्टि से सूर्य को आत्मा का स्वरुप माना गया है. सूर्य का तेज एवं प्रकाश समस्त प्राणियों के लिए जीवन का अहम घटक बनता है. इस कारण से सूर्य का संक्रमण काल ही संक्रांति काल होता है. इस दिन पर सूर्य की उपासना करने से आरोग्य एवं आयुष की प्राप्ति होती है.
सूर्य की उपासना अत्यंत ही शुभ एवं अक्षय फल प्रदान करने योग्य होती है. यह समय सुर्य उपासना द्वारा सुख समृद्धि की प्राप्ति होती है. ज्योतिष में सूर्य को समस्त ग्रहों में प्रथम स्थान प्राप्त है. यह आत्मा का स्वरुप कहे गए हैं. जीवन में मौजूद रोग एवं पराजय से बचाव के लिए सूर्य उपासना चमत्कारिक फल प्रदान करती है. सूर्य साधना द्वारा संतान एवं परिवार के कल्याण का सुख प्राप्त होता है.
बारह संक्रांति के नाम
- माघ संक्रांति (मकर संक्रांति)
- फाल्गुन संक्रान्ति (कुम्भ संक्रांति)
- चैत्र संक्रांति (मीन संक्रांति)
- वैशाख संक्रांति (मेष संक्रांति)
- ज्येष्ठ संक्रांति (वृषभ संक्रांति)
- आषाढ़ संक्रांति (मिथुन संक्रांति)
- श्रावण संक्रांति (कर्क संक्रांति)
- भाद्रपद संक्रांति (सिंह संक्रांति)
- आश्विन संक्रांति (कन्या संक्रांति)
- कार्तिक संक्रांति (तुला संक्रांति)
- मार्गशीर्ष संक्रांति (वृश्चिक संक्रांति)
- पौष संक्रांति (धनु संक्रांति)
संक्रांति का परिवर्तन से होता है. इस समय पर प्रकृति में बदलाव होता दिखाई देता है इसीलिए संक्रांति के दिन प्रकृति पूजन होता है. समस्त भौतिक व जैविक इत्यादि तत्वों पर बदलाव का असर अवश्य होता है. इन बदलावों के अनुसार स्वयं को कैसे स्थापित किया जाए इसके लिए जो भी नियम बताए गए हैं उनका पालन करने से मानसिक एवं दैहिक सभी प्रकार से संतुलन की प्राप्ति होती है.
आचार्या राजरानी शर्मा, ज्योतिष विशेषज्ञ