विवाह समय पर न हो पाना या रिश्ते की बात तो रोज हो लेकिन उसमें भी बात बन न पाए. ऎसे में जातक के मन में निराशा का भाव बढ़ने लगता है. ज्योतिष में ऎसे अनेक कारण बनते हैं जो विवाह में विलम्ब की स्थिति को दर्शाते हैं. वैदिक ज्योतिष में विवाह के लिए सातवां भाव मुख्य माना गया है और इस भाव पर ग्रहों के प्रभाव स्वरूप ऎसी अनेक स्थितियां उत्पन्न होती हैं जिनके चलते शादी में देरी या बार बार बनते रिश्तों का टूटना सहना पड़ता है.
दांपत्य जीवन में कितना सुख मिलेगा या जीवन कैसा रहेगा. यह सब कुण्डली के योगों पर निर्भर करता है. शुभ ग्रह, शुभ भावों के स्वामी होकर जब शुभ भावों में स्थित हों तथा अशुभ ग्रह निर्बल होकर अशुभ भावों के स्वामी होकर, अशुभ भावों में स्थित हों तो व्यक्ति को अनुकूल फल देते हैं. कुण्डली के योग विवाह को किस प्रकार प्रभावित करते है.
- जातक की कुण्डली में सप्तमेश वक्री हो और मंगल छठे भाव में हो तो ऎसे व्यक्ति की शादी में देरी का योग बनता है.
- जातक की कुण्डली में सातवें भाव का स्वामी अगर छठे, आठवें, बारहवें भाव या लग्न भाव में स्थित हो तो विवाह में विलम्ब के योग देखने को मिलते हैं.
- जब जन्म कुण्डली में अष्टमेश पंचम में हों व्यक्ति का विवाह विलम्ब से होने की संभावना बनती है. अष्टम भाव व इस भाव के स्वामी का संबन्ध जिन भावों से बनता है. उन भावों के फलों की प्राप्ति में बाधाएं आने की संभावना रहती है.
- जब शनि और शुक्र लग्न से चौथे भाव में हों तथा चन्द्रमा छठे, आठवें या बारहवें भाव में हों तो व्यक्ति का विवाह तीस वर्ष के बाद होने की संभावना अधिक रहती देखी गई है.
- किसी व्यक्ति की कुण्डली में राहु और शुक्र जब प्रथम भाव में हों तथा मंगल सप्तम भाव में स्थित हों तो व्यक्ति का विवाह 28 से 30 वर्ष की आयु में होने की संभावनाएं बनती है.
- कुण्डली में सप्तमेश बलहीन हो तथा शनि व मंगल एक साथ प्रथम, द्वितीय, सप्तम या एकादश में हों तो व्यक्ति का विवाह देर से होने के योग बनते हैं.
- इसके अतिरिक्त मंगल या शुक्र एक साथ पंचम या सप्तम भाव में स्थित हो एवं दोनो को गुरु देख रहे हों, तो व्यक्ति का विवाह वयस्क आयु में होने की संभावना बनती है.
विवाह के लिये सप्तम भाव, सप्तमेश और शुक्र का विचार किया जाता है. ये तीनों शुभ स्थिति में हों तो विवाह शीघ्र होता है तथा वैवाहिक जीवन भी सुखमय रहने की संभावनाएं बनती है.
जब जन्म कुण्डली में अष्टमेश पंचम में हों व्यक्ति का विवाह विलम्ब से होने की संभावना बनती है.
विवाह में हो रही देरी के उपाय
गुरू को विवाह का प्रमुख कारक माना गया है कुण्डली में इनकी शुभता द्वारा आपको दांपत्य जीवन का सुख प्राप्त होता है अत: गुरू से संबंधित उपाय बेहद शुभ माने जाते हैं.
- गुरू की शुभता हेतु आपको चाहिए की गुरूवार के दिन व्रत करें, पीला वस्त्र धारण करें तथा मंदिर में हल्दी का दान करें.
- विवाह में यदि देरी हो रही हो तो ‘गौरी शंकर की पूजा’ नियमित रूप से करनी चाहिए साथ ही मां गौरी को सिंगार की वस्तुएं भेंट करें.
- मंगलवार के दिन हनुमान जी की पूजा करनी चाहिए और हनुमान जी को सिन्दूर व चोला चढ़ाएं.
- माँ दुर्गा के समक्ष सप्तशती स्त्रोत क पाठ करें व कन्याओं को भोजन कराएं.
- युवक -युवती की कुण्डली में यदि मांगलिक दोष बन रहा हो तो मांगलिक दोष व ग्रह शांति की पूजा जरूर करवाएं.
- बृहस्पतिवार को नहाने वाले पानी में एक चुटकी हल्दी डालकर स्नान करना चाहिए और केले के वृ्क्ष को नियमित रूप से जल अर्पित करें.
शुद्ध व सात्विक रूप से किए गए उपायों द्वारा विवाह में विलम्ब की स्थिति से बचाव किया जा सकता है. साथ ही दांपत्य जीवन की शुरूआत भी प्रसन्नतापूर्वक व संतोषजनक आरंभ होती है.
आचार्या राजरानी शर्मा, ज्योतिष विशेषज्ञ