कोकिला व्रत महत्व
कोकिला व्रत की ऐसी मान्यता है कि इस व्रत को करने से सभी सुखों की प्राप्ति संभव हो पाति है. यह दांपत्य जीवन को खुशहाल होने का वरदान प्रदान करता है. इस व्रत के द्वारा मन के अनुरुप शुभ फलों की प्राप्ति होती है. शादी में आ रही किसी भी प्रकार की दिक्कत हो तो इस व्रत का पालन करने से विवाह का सुख प्राप्त होता है. यह व्रत योग्य वर की प्राप्ति कराने में सहायक बनता है.
इस वर्ष कोकिला व्रत 4 जुलाई 2020 को शनिवार् के दिन रखा जाएगा.
कोकिला व्रत की कथा
कोकिला व्रत की कहानी का संबंध शिव पुराण में भी प्राप्त होता है. कथा इस प्रकार है ब्रह्मा के मानस पुत्र दक्ष के घर देवि सती का जन्म होता है. दक्ष विष्णु का भक्त था और भगवान शिव से द्वेष रखता था. जब बात सती के विवाह की होती है, तब राजा दक्ष कभी भी सती का संबंध भगवान शिव से जोड़ना नहीं चाहते थे. राजा दक्ष के मना करने पर भी सती ने भगवान शिव से विवाह कर लिया होता है. पुत्री सती के इस कार्य से दक्ष इतना क्रोधित होते हैं कि वह उससे अपने सभी संबंध तोड़ लेते हैं. कुछ समय बाद राजा दक्ष शिव अपमान करने हेतु एक महायज्ञ का आयोजन करते हैं. उसमें दक्ष अपनी पुत्री सती और दामाद भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया गया।
देवी सती को जब अपने पिता के इस कार्य का बोध होता है तो वह उस यज्ञ में जाने के लिए तैयार होती हैं भगवान शिव उन्हें इस बात की इजाज़त नहीं देते हैं. पर देवी सती की जिद के आगे हार जाते हैं और उन्हें जाने देते हैं. सती यज्ञ पर जाकर जब अपने पति का स्थान नहीं पाती तो अपने पिता दक्ष से इसके बारे में पूछती हैं लेकिन दक्ष अपनी पुत्री सती और शिव का अपमान करते हैं. शिव के प्रति अपमान जनक शब्दों को वह सहन नहीं कर पाती हैं और उस यज्ञ के हवन कुण्ड में अपनी देह का त्याग कर देती
भगवान शिव को जब पता चलता है तो वह दक्ष और उसके यज्ञ को नष्ट कर देते हैं. शिव सती के वियोग को नही सह पाते हैं और शिव की इच्छा के विरुद्ध जाकर यज्ञ में जाकर प्राणों को त्यागने पर उन्हें हजार वर्षों तक कोयल बनने का श्राप देते हैं. देवी सती कोयल बनकर हजारों वर्षों तक भगवान शिव को पुन: पाने के लिए तपस्या करती हैं. उनकी तपस्या का फल उन्हें पार्वती रुप में शिव की प्राप्ति के रुप में मिलता है. तब से कोकिला व्रत की महत्ता स्थापित होती है.
कोकिला व्रत महिमा
आषाढ़ पूर्णिमा के दिन रखा गया ये व्रत संपूर्ण सावन में आने वाले व्रतों का आरंभ होता है. इस व्रत में देवी के स्वरूप कोयल रुप में पूजा जाता है. कहा जाता है कि माता सती ने कोयल रुप में भगवान शिव को पाने के लिए वर्षों तक कठोर तपस्या की थी. उनकी तपस्या के शुभ फल स्वरूप उन्हें पार्वती रुप मिला और जीवन साथी रुप में भगवान शिव की प्राप्ति होती है.