दरद भारतीय आर्यों का महाभारत में प्रमाण 

Mahabharata - Wikipediaआईजीएनसीए में `आर्य उत्सव` का 16 से ...
      पाणिनि की अष्टाध्यायी में दरद का वर्णन हुआ है, जिसमें उसकी भौगालिक स्थिति स्पष्ट रूप से लिखी गई है.  
     वासुदेव शरण अग्रवाल द्वारा रचित पाणिनि कालीन भारत में आया है कि सिन्धु नदी कैलाश पर्वत के पश्चिमी तट के अंतिम छोर से निकल कर काश्मीर को दो भागों में बांटती हैं. यह गिलगित चिलास होते हुए दरद के मैदान में उतरती है. इसलिए सिन्धु को दारदी सिन्धु भी कहा जाता है.


    तिब्बत में कैलाश पर्वत श्रंखला के पश्चिमी भाग में बोखार-चू नामक ग्लेशियर जो समुद्र तल से 4164 मीटर की ऊँचाई पर है,  सिन्धु नदी उसी ग्लेशियर से निकलती है.  तिब्बत में सिन्धु नदी को 'सिंघी खमबं' अर्थात्  'शेर का मुंह' कहते हैं. लद्दाख और जास्कर सीमा के बीच उत्तर-पश्चिम दिशा में बहने के बाद यह लद्दाख और बाल्टिस्तान के माध्यम से गुजरती है. यह लद्दाख सीमा को पार करते हुए जम्मू-कश्मीर में गिलगित के पास दार्दिस्तान क्षेत्र से गुजरती है. जो भारतीय काश्मीर क्षेत्र और उत्तर पूर्व अफगानिस्तान से जुड़ा हुआ है, एक हिस्सा आज भी पाकिस्तान के कब्जे में हैं.


     अरुण कुमार द्वारा रचित पुस्तक ग्रियर्सन- भाषा और साहित्य चिंतन में स्वीकार किया गया है कि दरद की भाषा आर्य भाषा परिवार से अलग नहीं है. 
    IGNCA organises Arya Utsav in Delhi | Delhi News - Times of India


      राहुल सांकृत्यायन मध्य एशिया का इतिहास, भाग-2 में भी स्वीकार करते हैं कि आठवीं शताब्दी के बाद इस्लाम के आने के बाद दारदीय भाषा-भाषी भारतीय आर्य भाषा की मुख्य सांस्कृतिक धारा से अलग हो गए. 
     डॉ त्रिलोकी नाथ गंजू - कश्मीरी भाषा भाषाशास्त्रीय अध्ययन, ( पृष्ठ -340-364 ) में ग्रियुर्सन द्वारा संकलित 127 काश्मीरी शब्दों का मूल स्रोत दरदीय मानते हैं. दरद का क्षेत्र काश्मीर, डोगरी, पंजाब से जुड़ा है. इसलिए आर्य भाषा परिवार से यह जुड़ा रहा .
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      आज लगभग 4 हजार भारतीय दरद आर्यों ने लगभग 12 सौ वर्षों के राजनीतिक व सांस्कृतिक आक्रमणों को झेलते हुए अपनी लोक संस्कृति व आध्यात्मिक परम्परा को अक्षुण्ण रखा है. 


     काश्मीर के इतिहास व धार्मिक संस्कृति के विशेषज्ञ श्री वीरेन्द्र बांगरू जो इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय कला व संस्कृति के जम्मू और काश्मीर के निदेशक है, ने दरद के बचे हुए आर्यों की खोज कर उसे विश्व पटल पर लाने का प्रशंसनीय कार्य किया है. 
     अर्जुन ने अपनी उत्तर दिशा की दिग्विजय-यात्रा के प्रसंग में दर्दरों या दर्दिस्तान के निवासियों के साथ ही कांबोजों को भी परास्त किया था-
'गृहीत्वा तु बलं सारं फाल्गुन: पांडुनन्दन:


दरदान् सह काम्बोजैरजयत् पाकशासनि:


हेमकूट को कैलाश का पर्याय ही कहा गया है,


हेमकूटस्तु सुमहान् कैलासो नाम पर्वतः 
कैरात दरदा दर्वाः शूरा वै यमाकस्ता |
औदुम्बरा दुर्विभागा: पारदा बाल्हिकै: सह ||
कश्मीराश्च कुमाराश्च घोरका हंसकायना: |
शिबित्रिगर्तयौधेया राजन्या भद्रकेकया: ||
सुजायतः श्रेणिमन्तः श्रेयांसः शस्त्रधारिण: |
अहार्षु: क्षत्रिया वित्तं शतशो$जातशत्रवे ||
 (श्लोक 13,14, 17 - द्वि पंचाशात्तमोध्याय: द्युत पर्व- सभा पर्व. महाभारत)



    -किरात, दरद, दर्व, शूर, यमक, औदुम्बर, दुर्विभाग, पारद, बाल्हिक, काश्मीर, कुमार, घोरक, हंसकायन, शिबि, त्रिगर्त, यौधेय, भद्र, केकय...
     ये उत्तम कुलों में उत्तम श्रेष्ठ एवं शस्त्रधारी क्षत्रिय राजकुमार सैकड़ों की संख्या में पंक्तिबद्ध खड़े होकर अजातशत्रु युधिष्ठिर को बहुत धन अर्पित कर रहे थे.


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