पुरूषोत्तमा एकादशी
मल मास अर्थात अधिक मास इस मास में आने वाली एकादशी को ही पुरूषोत्तमा एकादशी के नाम से जाना जाता है. ये एकादशी बहुत अधिक खास होती है. इस दिन किया गया एकादशी पूजन आपके पुण्यों में वृद्धि करता है और आपके अपराधों की शांति भी होती है. इस दिन की एकादशी का वर्णन हमें विष्णु पुराण, स्कंद पुराण इत्यादि धर्म ग्रंथों में प्राप्त होता है. जहां पर एकादशी की महिमा का बहुत ही सुंदर शब्दों में विस्तारपूर्वक वर्णन प्राप्त होता है. .
क्यों होती है पुरूषोत्तमा एकादशी इतनी खास ?
पुरूषोत्तमा एकादशी की महिमा अत्यंत ही विरल है. यह एकादशी समस्त एकादशियों से अलग होती है और इसका एक विशेष महत्व भी होता है. पुरुषोतमा एकादशी को इसलिए भी इतना खास इस कारण से माना गया है क्योंकि इस एकादशी को हम प्रतिवर्ष नही देख पाते है. प्रत्येक तीन वर्ष के पश्चात ही हमें इस एकादशी के दर्शन होते हैं. इस कारण से पुरुषोत्तमा एकादशी की महिमा सबसे अलग और विशिष्ट मानी गयी है.
कब किया जाता है पुरुषोत्तमा एकादशी का व्रत ?
पुरूषोत्तमा एकादशी का व्रत और इसका पूजन अधिक मास में ही किया जाता है. अधिक मास को पुरुषोत्तम मास भी कहा जाता है अत: इस मास में आने वाली एकादशी पुरुषोत्तमा एकादशी भी कहलाती है. महाभारत के आदि पर्व में धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवान श्री कृष्ण से इस एकादशी के विषय में जानने की इच्छा व्यक्त की थी. वह भगवान श्री कृष्ण से पूछते हैं कि "हे जनार्दन मुझे पुरुषोत्तम मास की एकादशी की महिमा बताने का कष्ट करें उनके इस प्रश्न पर भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि हे धर्मराज पुरूषोत्तमा एकादशी अपराधों का नाश करने वाली, मनुष्यों का कल्याण करने वाली और मनोकामनाओं की पूर्ति करने वाली होती है.
कैसे की जाती है पुरूषोत्तमा एकादशी पूजा और उपासना
अधिक मास में आने वाली इस महत्वपूर्ण एकादशी के दिन उपासना और व्रत इत्यादि का संकल्प लेकर दिन का आरंभ करना चाहिए. उपासक को चाहिए की प्रात:काल ब्रह्म मुहूर्त समय उठकर स्नान इत्यादि दैनिक कार्यों से निवृत होकर एकादशी का पूजन आरंभ करना चाहिए. इस दिन एकादशी के नियमों का पालन करते हुए ही व्रत का संकल्प पूरा करना चाहिए. शुद्ध चित्त से श्री हरि के नाम का स्मरण दिन भर करते रहना चाहिए. निराहार या फिर फलाहार द्वारा जैसा भी सामर्थ्य हो एकादशी व्रत को धारण करना चाहिए. सभी प्रकार के व्यसनों का परित्याग करते हुए सात्विक रुप से दिन व्यतीत करना चाहिए. भगवान श्री विष्णु जी का षोडशोपचार पूजन प्रात:काल और संध्या समय करना चाहिए.
पुरूषोत्तमा एकादशी व्रत कथा से दूर होते हैं सभी कष्ट
पुरूषोत्तमा एकादशी के दिन उपासक को चाहिए की एकादशी कथा का श्रवण अवश्य करे. पुरूषोत्तमा एकादशी व्रत कथा का आरंभ प्राचीन काल की एक नगरी अवंतिपुरी में होता है. उस नगर में शिवशर्मा नाम का ब्राह्मण अपने पुत्रों के साथ निवास करता था. उसका सबसे छोटा पुत्र गलत कार्यों की ओर उन्मुख हो जाता है जिस कारण परिवार से उसे निकाल दिया जाता है. वह लड़का परिवार से अलग होकर भटकने लगता है और एक दिन प्रयाग जा पहुंचता है.
वह भोजन की तलाश में मारा-मारा फिरता है पर उसे कहीम भोजन नही मिलता वह व्याकुल होकर त्रिवेणी के जल से स्नान करने लगता है और जल पीकर अपनी भूख मिटाने की कोशिश करता है. सौभाग्य वश वह अधिकमास की एकादशी का दिन होता है. त्रिवेणी में मुनियों के मुख से उसे एकादशी की कथा भी सुनने को मिलती है. भूख से व्याकुल ही वह सो जाता है और स्वप्न में ईश्वर के दर्शन होते हैं और उसके सभी पापों का नाश होता है. वह लड़का सदगति को प्राप्त करता है. श्री विष्णु की भक्ति में लिप्त होकर सम्मानित जीवन व्यतीत करता है.अत: पुरुषोत्तमा एकादशी के दिन अंजाने में किए हुए व्रत का लाभ जिस प्रकार से उस ब्राह्मण के पुत्र को प्राप्त हुआ उसी प्रकार हम सभी को भी एकादशी के शुभ फलों की प्राप्ति हो
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नारायण हरि ओम.