अग्नै दे॒वाँ इहावह जानो वृक्तर्हिषे।
असि होता न ईड्यः॥३॥
अग्ने। देवान्। दुहआ। वह। ज़ज्ञानः। वृक्तऽबर्हिष। असि। होता। नःईड्यः॥३॥
पदार्थः-(अग्ने) स्तोतुमर्हेश्वर भौतिकोऽग्निर्वा (देवान्) दिव्यगुणसहितान् पदार्थान् (इह) अस्मिन् स्थाने (आ) अभितः (वह) वहति वा (जज्ञान:) प्रादुर्भावयिता (वृक्तबर्हिषे) वृक्तं त्यक्तं हविर्बर्हिष्यन्तरिक्षे येन तस्मा ऋत्विजे। वृक्तबर्हिष इति ऋत्विङ्नामसु पठितम्। (निघं०३.१७) (असि) भवति (होता) हुतस्य पदार्थस्य दाता (न:) अस्मभ्यमस्माकं वा (ईड्यः) अध्येष्टव्यः॥३॥
अन्वयः-हे अग्ने वन्दनीयेश्वर! त्वमिह जज्ञानो होतेऽड्योऽसि नोऽस्मभ्यं वृक्तबर्हिषे च देवानावह समन्तात् प्रापयेत्येकः। अयं होता जज्ञानोऽग्निर्वृक्तबर्हिषे नोऽस्मभ्यं च देवानावह समन्तात् प्रापयति, अतोऽस्माकं स ईड्यो भवति (इति द्वितायः)।।३।
भावार्थ:-अत्र श्लेषालङ्कारःमनुष्यैर्यस्मिन् प्रादुर्भूतेऽग्नौ सुगन्ध्यादिगुणयुक्तानां द्रव्याणां होम: क्रियते, स तद्र्व्यसहित आकाशे वायु मेघमण्डलं च, शुद्धे ह्यस्मिन् संसारे दिव्यानि सुखानि जनयति, तस्मादयमस्माभिर्नित्यमन्वेष्टव्यगुणोऽस्तीतीश्वराज्ञा मन्तव्या।।३।।
पदार्थ:-हे (अग्ने) स्तुति करने योग्य जगदीश्वर! जो आप (इह) इस स्थान में (जज्ञानः) प्रकट कराने वा (होता) हवन किये हुए पदार्थों को ग्रहण करने तथा (ईड्यः) खोज करने योग्य (असि) हैं, सो (नः) हम लोग और (वृक्तबर्हिषे) अन्तरिक्ष में होम के पदार्थों को प्राप्त करनेवाले विद्वान् के लिये (देवान्) दिव्यगुणयुक्त पदार्थों को (आवह) अच्छे प्रकार प्राप्त कीजिये।।१॥३॥
जो (होता) हवन किये हुए पदार्थों का ग्रहण करने तथा (जज्ञान:) उनकी उत्पत्ति करानेवाला (अग्ने) भौतिक अग्नि (वृक्तबर्हिषे) जिसके द्वारा होम करने योग्य पदार्थ अन्तरिक्ष में पहुंचाये जाते हैं, वह उस ऋत्विज् के लिये (इह) इस स्थान में (देवान्) दिव्यगुणयुक्त पदार्थों को (आवह) सब प्रकार से प्राप्त करता है। इस कारण (न:) हम लोगों को वह (ईड्यः) खोज करने योग्य (असि) होता है।२॥३॥ ___
भावार्थ:-इस मन्त्र में श्लेषालङ्कार है। हे मनुष्य लोगो! जिस प्रत्यक्ष अग्नि में सुगन्धि आदि गुणयुक्त पदार्थों का होम किया करते हैं, जो उन पदार्थों के साथ अन्तरिक्ष में ठहरनेवाले वायु और मेघ के जल को शुद्ध करके इस संसार में दिव्य सुख उत्पन्न करता है, इस कारण हम लोगों को इस अग्नि के गुणों का खोज करना चाहिये, यह ईश्वर की आज्ञा सब को अवश्य माननी योग्य है।।३।। ___
अथाग्निगुणा उपदिश्यन्ते।
अगले मन्त्र में भौतिक अग्नि के गुणों का उपदेश किया है