योगैयोगे तवस्तरं वाजेवाजे हवामहे।
साय॒ इन्द्रमूतये॥७॥
योगेऽयोगे। तवःऽतरम्। वाजेऽवाजे। हवामहे। सखायःइन्द्रम्। ऊतये॥७॥
पदार्थ:-(योगेयोगे) अनुपात्तस्योपात्तलक्षणो योगस्तस्मिन् प्रतियोगे (तवस्तरम्) तूयते विज्ञायत इति तवाः सोऽतिशयितस्तम्। सायणाचार्येणात्र विन्प्रत्ययस्य छान्दसो लोप इति यदुक्तं तदशुद्ध प्रमाणाभावात् (वाजेवाजे) युद्धं युद्ध प्रति (हवामहे) आह्वयामहि। अत्र लेटोऽस्मद्वहुवचने लेटोऽडाटौ। (अष्टा०३.४.९४) अनेनाडागमे कृते। बहुलं छन्दसि। (अष्टा०६.१.३४) इति सम्प्रसारणम्। (सखायः) सुहृदो भूत्वा (इन्द्रम्) सर्वविजयप्रदं जगदीश्वरं वा दुष्टशत्रुनिवारकमात्मशरीरबलवन्तं धार्मिकं वीरं सेनापतिम् (ऊतये) रक्षणाद्याय विजयसुखप्राप्तये वा।।७।।
अन्वयः-वयं सखायो भूत्वा स्वोतये योगेयोगे वाजेवाजे तवस्तरमिन्द्रं परमात्मानं सभाध्यक्षं वा हवामहे॥७॥ __
भावार्थ:-अत्र श्लेषालङ्कारः। मनुष्यैर्मित्रतां सम्पाद्य प्राप्तानां पदार्थानां रक्षणं सर्वत्र विजयश्च कार्यः। परमेश्वरः सेनापतिश्च नित्यमाश्रयणीय: नैवैतावन्मात्रेणैवैतत्सिद्धिर्भवितुमर्हति। किं तर्हि ? विद्यापुरुषार्थाभ्यामेतस्य सिद्धिर्जायत इति॥७॥
पदार्थ:-हम लोग (सखायः) परस्पर मित्र होकर अपनी (ऊतये) उन्नति वा रक्षा के लिये (योगेयोगे) अति कठिनता से प्राप्त होने वाले पदार्थ-पदार्थ में वा (वाजेवाजे) युद्ध-युद्ध में (तवस्तरम्) जो अच्छे प्रकार वेदों से जाना जाता है, उस (इन्द्रम्) सब से विजय देने वाले जगदीश्वर वा दुष्ट शत्रुओं को दूर करने और आत्मा वा शरीर के बल वाले धार्मिक सभाध्यक्ष को (हवामहे) बुलावें अर्थात् बारबार उसकी विज्ञप्ति करते रहें।।७॥
भावार्थ:-इस मन्त्र में श्लेषालङ्कार है। मनुष्यों को परस्पर मित्रता सिद्ध कर अलभ्य पदार्थों की रक्षा और सब जगह विजय करना चाहिये तथा परमेश्वर और सेनापति का नित्य आश्रय करना चाहिये और यह भी स्मरण रखना चाहिये कि उक्त आश्रय से ही उत्तम कार्यसिद्धि होने के योग्य हो, सो ही नहीं, किन्तु विद्या और पुरुषार्थ भी उनके लिये करने चाहिये।॥७॥
स केन सहागच्छदित्युपदिश्यते॥
वह किसके साथ प्राप्त हो, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है