अनवद्यैरभिद्युभिर्मुखः सहस्वदर्चति।
गणैरिन्द्रस्य॒ काम्यैः॥८॥
अनवद्यैः। अभिऽद्युभिः। मुखः। सहस्वत्। अर्चति। गणैः। इन्द्रस्य। काम्यैः॥ ८॥
पदार्थ:-(अनवद्यैः) निर्दोषैः (अभिधुभिः) अभितः प्रकाशमानैः (मख:) पालनशिल्पाख्यो यज्ञः। मख इति यज्ञनामसु पठितम्। (निघं०३.१७) (सहस्वत्) सहोऽतिशयितं सहनं विद्यते यस्मिन् तद्यथा स्यात्तथा। अत्रातिशये मतुप्। (अर्चति) सर्वान् पदार्थान् सत्करोति (गणैः) किरणसमूहैर्मरुद्भिर्वा (इन्द्रस्य) सूर्य्यस्य (काम्यैः) कामयितव्यैरुत्तमैः सह मिलित्वा॥८॥
अन्वयः-अयं मख इन्द्रस्यानवद्यैरभिद्युभिः काम्यैर्गणैः सह सर्वान्पदार्थान्सहस्वदर्चति॥८॥
भावार्थ:-अयं सुखरक्षणप्रदो यज्ञः शुद्धानां द्रव्याणामग्नौ कृतेन होमेन सम्पादितो हि वायुकिरणशोधनद्वारा रोगविनाशनात्सर्वान् प्राणिनः सुखयित्वा बलवतः करोति
अत्र मोक्षमूलरेण मखशब्देन यज्ञकर्त्ता गृहीतस्तदन्यथास्ति। कुतो, मखशब्देन यज्ञस्याभिधानत्वेन कमनीयैर्वायुगणैः सूर्यकिरणसहितैः सह हुतद्रव्यवहनेन वायुवृष्टिजलशुद्धिद्वारेष्टसुखसम्पादनेन सर्वेषां प्राणिनां सत्कारहेतुत्वात्। यच्चोक्तं 'मखशब्देन देवानां शत्रुर्गृह्यते' तदप्यन्यथास्ति। कुतस्तत्र मखशब्दस्योपमावाचकत्वात्।।८।।
पदार्थ:-जो यह (मखः) सुख और पालन होने का हेतु यज्ञ है, वह (इन्द्रस्य) सूर्य की (अनवद्यैः) निर्दोष (अभियुभिः) सब और से प्रकाशमान और (काम्यैः) प्राप्ति की इच्छा करने के योग्य (गणैः) किरणों वा पवनों के साथ मिलकर सब पदार्थों को (सहस्वत्) जैसे दृढ़ होते हैं, वैसे ही (अर्चति) श्रेष्ठ गुण करनेवाला होता है।॥८॥
भावार्थ:-जो शुद्ध अत्युत्तम होम के योग्य पदार्थों के अग्नि में किये हुए होम से किया हुआ यज्ञ है, वह वायु और सूर्य की किरणों की शुद्धि के द्वारा रोगनाश करने के हेतु से सब जीवों को सुख देकर बलवान् करता है।
'यहां मखशब्द से यज्ञ करनेवाले का ग्रहण है, तथा देवों के शत्रु का भी ग्रहण है।' यह भी मोक्षमूलर साहब का कहना ठीक नहीं, क्योंकि जो मखशब्द यज्ञ का वाची है, वह सूर्य की किरणों के सहित अच्छे-अच्छे वायु के गुणों से हवन किये हुए पदार्थों को सर्वत्र पहुंचाता है, तथा वायु और वृष्टिजल की शुद्धि का हेतु होने से सब प्राणियों को सुख देनेवाला होता है। और मख शब्द के उपमावाचक होने से देवों के शत्रु का भी ग्रहण नहीं।।८॥ ___
अथ मरुतां गमनशीलत्वमुपदिश्यते।
अगले मन्त्र में गमनस्वभाववाले पवन का प्रकाश किया है।