नई दिल्ली, 8 अक्टूबर 2022। इंदिरा गांधी नेशनल आर्ट एंड कल्चर संस्था द्वारा जनपद परिसर, नई दिल्ली में संस्थान के निदेशक प्रोफेसर वीरेंद्र बांगरू के आमंत्रण पर बाउल मार्ग के आध्यात्मिक संतों द्वारा प्रदर्शित समारोह में भाग लेने का अवसर प्राप्त हुआ।
पार्वती बाउल के नेतृत्व में प्रस्तुति का स्वरूप सामान्य कलाकारों के कला प्रदर्शन की भांति ना होकर मंत्रमुग्ध कर देने वाले वैष्णववाद भक्ति संगीत व नृत्य की उत्कृष्ट पहचान के रूप में सफल हुआ। पार्वती बाउल 1997 से केरल के तिरुवनंतपुरम में स्थित हैं, जहाँ वह बाउल संगीत के लिए एक स्कूल "एकतारा बाउल संगीत कलारी" भी चलाती हैं।
वास्तव में बाउल का अर्थ व्याकुलता से ज्यादा समझा जाता है। भगवान को पाने की व्याकुलता। लगभग 500 साल का इतिहास बाउल मार्ग से जुड़ा है। 19वीं शताब्दी तक इस परंपरा के गीतों को लिपिबद्ध करने का कार्य हो चुका था। पश्चिम बंगाल , त्रिपुरा और असम की बराक घाटी और मेघालय में वैष्णववाद के रहस्यवादी का एक समूह है । बाउल धार्मिक संप्रदाय और संगीत परंपरा का अद्भुत संगम है। आज देश में ही नहीं विदेशों में भी बहुत सारे गायक, गायिका बाउल मार्ग से जुड़े हुए हैं। उन्हें अक्सर उनके विशिष्ट कपड़ों और संगीत वाद्ययंत्रों से,एक तारा और कमर से बंधा एक ड्रम से पहचाना जा सकता है।
पश्चिम बंगाल का एक और लोकप्रिय बाउल बोलपुर की रीना दास बाउल है । उन्होंने रंगमातिर बाउल नाम की अपनी मंडली के साथ, 2017 में स्वीडन में उर्कल्ट फेस्टिवल, 2018 में फ्रांस में आर्मर इंडिया फेस्टिवल और 2021 में पोर्टो, पुर्तगाल में वोमेक्स जैसे कई अंतरराष्ट्रीय कार्यक्रमों में प्रदर्शन किया था।
बाउल शब्द वृंदावन दास ठाकुर के चैतन्य भागवत के साथ-साथ कृष्णदास कविराज के चैतन्य चरितामृत में पाया जाता है। बावल को एक अर्थ में पागलपन भी कहे तो भक्ति संगीत का यह पागलपन भारत से निकलकर अमेरिका लंदन तक पहुंच चुका है। उनका संगीत रॉक
काफी अलग है। लेकिन भारतीय बाउल गुरुओं से सीखा
आध्यात्मिक स्पर्श बना कर रखा हुआ है।
बांग्लादेश में सूफीवाद से बाउल परंपरा जुड़ी हुई है। पल्ली बाउल समाज उन्नयन संगठन (पीबीएसयूएस), एक बांग्लादेशी संगठन, 2000 से बाउल परंपराओं को बनाए रखने के लिए काम कर रहा है। जानकारी मिली कि कोलकाता में 2006 से साल में एक बार बाउल फकीर उत्सव किया जा रहा है।
- आचार्य मदन